दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी का विजय रथ रोकने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का फोकस पश्चिम बंगाल पर है. 2021 के बंगाल चुनाव में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी बीजेपी इस बार अधिक आक्रामक रणनीति के साथ उतरने के संकेत दे चुकी है. गृह मंत्री अमित शाह के हर महीने दो दिन बंगाल दौरे का कार्यक्रम भी तैयार है. ऐसे में वक्फ कानून के खिलाफ मुर्शिदाबाद में भड़की हिंसा ने पश्चिम बंगाल की सियासी फिजां में और गर्माहट ला दी है. शिक्षक भर्ती घोटाला और बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर आक्रामक बीजेपी को मुर्शिदाबाद हिंसा ने ममता बनर्जी की सरकार को तुष्टिकरण को लेकर कठघरे में खड़ा करने का मौका दे दिया है.
मुर्शिदाबाद, उत्तर बंगाल के मालदा से सटा है. मालदा उत्तर बंगाल में आता है. बंगाल में बीजेपी का एंट्री पॉइंट रहे उत्तर बंगाल में पिछले कुछ चुनावों से कमल निशान वाली पार्टी मजबूती से उभरी है. ऐसे में बात बंगाल की रीजनल पॉलिटिक्स को लेकर भी होने लगी है. पश्चिम बंगाल की सियासत देखें तो यह नॉर्थ और साउथ पोल में बंटी नजर आती है. दोनों ही इलाकों का अपना मिजाज है. उत्तर बंगाल में बीजेपी का मजबूत उभार हुआ है तो वहीं दक्षिण बंगाल ममता बनर्जी का दुर्ग है. उत्तर बंगाल में मालदा के साथ ही कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, उत्तर दिनाजपुर और दक्षिण दिनाजपुर जिले आते हैं. इन जिलों में कुल 54 विधानसभा सीटें हैं.
दक्षिण बंगाल की बात करें तो ममता बनर्जी की पार्टी का पावर हाउस माने जाने वाले इस इलाके में राजधानी कोलकाता के साथ ही उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना जैसे जिले आते हैं. टीएमसी का वोट शेयर इस रीजन में लगातार 49 फीसदी के आसपास रहा है. साल 2019 के चुनाव में जब बीजेपी ने 18 लोकसभा सीटें जीती थीं, तब भी ममता बनर्जी की पार्टी अपना दक्षिणी दुर्ग बचाने में सफल रही थी. 2021 के विधानसभा चुनाव में उत्तर बंगाल में बीजेपी के मजबूत प्रदर्शन और नंदीग्राम की सीट पर चुनाव हारने के बावजूद ममता बनर्जी की पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी तो इसके पीछे भी दक्षिण बंगाल की भूमिका निर्णायक रही थी.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती लोकल लीडरशिप की रही है. 2021 के बंगाल चुनाव में बीजेपी आक्रामक प्रचार के बावजूद टीएमसी से करीब 10 फीसदी वोट के अंतर से पीछे रह गई तो उसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही बताया गया कि पार्टी लोकल लीडरशिप और बंगाली अस्मिता की पिच पर ममता के मुकाबले बहुत पीछे रह गई. इस बार पार्टी पहले से ही अलर्ट मोड में है. बंगाली भद्रलोक को अपने पाले में लाने के साथ ही पार्टी ने लोकल लीडरशिप पर अधिक फोकस किया.
शुभेंदु अधिकारी को विपक्ष का नेता बनाकर बीजेपी ने ममता बनर्जी के मुकाबले बंगाली अस्मिता की पिच पर एक चेहरा खड़ा किया तो प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार को केंद्रीय मंत्री बनाकर उत्तर बंगाल का किला मजबूत करने का प्रयास. बीजेपी के ये पांच नेता ममता बनर्जी के पावर हाउस में चुनौती देते नजर आ रहे हैं.
शुभेंदु अधिकारी
शुभेंदु अधिकारी की गिनती कभी ममता बनर्जी के करीबियों में होती थी. 2016 से 2020 तक ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार में मंत्री रहे शुभेंदु ने 2021 के चुनाव में नंदीग्राम से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा. वह सीएम ममता बनर्जी को हराकर विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए और बीजेपी ने उन्हें इसका इनाम भी दिया. विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी इस समय दक्षिण बंगाल में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा हैं. नंदीग्राम और आसपास के इलाकों में वह मजबूत प्रभाव रखते हैं.
सुकांत मजूमदार
सुकांत मजूमदार पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष हैं. बालुरघाट लोकसभा सीट से सांसद सुकांत की गिनती पश्चिम बंगाल में बीजेपी के फायरब्रांड नेता के तौर पर होती है. पेशे से शिक्षक सुकांत मजूमदार मोदी मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे हैं. वह हिंदू और हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों पर मुखर रहते हैं. बालुरघाट से सांसद सुकांत मजूमदार सिलीगुड़ी, मालदा समेत उत्तर बंगाल में मजबूत पकड़ रखते हैं. मुर्शिदाबाद और आसपास के जिलों में भी उनका अच्छा प्रभाव माना जाता है.
दिलीप घोष
दिलीप घोष पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष रहे हैं. वह मेदिनीपुर जिले से आते हैं जो दक्षिण बंगाल में आता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे दिलीप घोष ने 2014 में बीजेपी से राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी और पार्टी ने उन्हें 2015 में प्रदेश अध्यक्ष बना दिया था. 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में अपना अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हुए जब 18 सीटें जीती थीं, तब प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ही थे. बंगाल की सियासत में उनकी पहचान एक कुशल संगठनकर्ता की है. दिलीप घोष 2016 से 2021 तक खड़गपुर सदर से विधायक और 2019 में मेदिनीपुर से सांसद भी रहे. वह बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे हैं.
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शांतनु ठाकुर
केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर की गिनती मतुआ समुदाय के सबसे प्रभावशाली नेताओं में होती है. ममता बनर्जी की सरकार में मंत्री रहे मंजूल कृष्ण ठाकुर के पुत्र शांतनु ठाकुर ने टीएमसी के गढ़ बनगांव में 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार कमल खिला दिया था. शांतनु बनगांव से पहले गैर टीएमसी सांसद भी हैं. कभी टीएमसी का कोर वोटर रहे मतुआ समुदाय के बीच सत्ताधारी दल की पकड़ कमजोर और बीजेपी का आधार मजबूत हुआ तो उसके पीछे भी शांतनु की ही भूमिका बताई जाती है.
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लॉकेट चटर्जी
फिल्मी दुनिया से सियासत में आईं लॉकेट चटर्जी पश्चिम बंगाल बीजेपी की महासचिव हैं. वह दक्षिण बंगाल की हुगली सीट से सांसद भी रही हैं. लॉकेट चटर्जी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत टीएमसी से ही की थी. बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गई थीं. लॉकेट चटर्जी, ममता सरकार के खिलाफ आक्रामक रहती हैं.